बरसात की शाम
बरसात की शाम
बरसात की एक शाम आई
चलो ये मेरे भी कुछ काम आई
वो शाम मेरे लिए कुछ ख़ास थी
मंगरू को भी इन्दर देवता से यही आस थी
और पपीहे को भी तो इन्ही बूंदों की प्यास थी
मिट्टी की खुशबू महसूस हुई उस दिन
तो लगा की किस बीहड़ वन में आ गया हूँ
पर अपने भुसौले पे जोर डाला तो एहसास हुआ कि
अब तक जहाँ भटक रहा था, वो बीहड़ था
कितने दिनों से इस मौसम का इंतज़ार था
प्यासी, व्याकुल धरती के लिए ये शीतल चन्दन का हार था
फिर बिजली का कड़कना क्यों लगा कि
जैसे किसी का हमारी संवेदनाओ पे प्रहार था ?
हमने सोचा चलो अब हमें थोड़ी शांति मिलेगी
पेड़ - पौधे, अन्य जीव, छोटे या बड़े, सब शांत हो गए थे
हमें भी अच्छा लगा
पर कुछ तो था जो व्याकुल था
शायद वो हमारा मन ही था
खैर छोड़ो इस बरसात से तो वो शांत होने से रहा
पर इस आंधी तूफान से मौज, मज़ा, मस्ती तमाम आई
जब बरसात की वो शाम आई
और तब लगा की पहली बार ये मेरे काम आई...।