तरसते हैं हम
तरसते हैं हम
करने दो
फ़िज़ाओं को ज़ालिम सितम
के छुपी हुई रुह से इनामे
बसते हैं हम...
तुम मुसकुरा जो देती हो
फुलों को देख
उन फुलों में हंसते है हम..
आ जाना वक्त रहते दर पे
दीदार करने हमारी चाहत का
आपके बिन हर साँस में तरसते हैं हम..
करने दो
फ़िज़ाओं को ज़ालिम सितम
के छुपी हुई रुह से इनामे
बसते हैं हम...
तुम मुसकुरा जो देती हो
फुलों को देख
उन फुलों में हंसते है हम..
आ जाना वक्त रहते दर पे
दीदार करने हमारी चाहत का
आपके बिन हर साँस में तरसते हैं हम..