Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!
Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!

Shakuntla Agarwal

Tragedy

5.0  

Shakuntla Agarwal

Tragedy

औरत

औरत

1 min
534


दिन की रोशनी बच्चों के ख़्वाबों को,

सजाने में गवाँ दी !

रातों की नींद, बच्चों को,

सुलाने में गवाँ दी !

जिस घर के सामने,

मेरे नाम की तख़्ती भी नहीं,

ताउम्र उसे सजाने में गवाँ दी !


जब चाहा रबर स्टैम्प बना दिया,

जब चाहा मौन स्वीकृति में गर्दन हिलवा दी !

कागजों में नोमिनी बनाकर सोचते हैं,

फर्ज़ अदा कर दिया !

जिसकी ताउम्र खिल्ली उड़वाने में लगा दी !

जिसकी कोख़ के दम से किलकारियाँ बन,

घर - आँगन चहकता है,

लड़की होने पर, उसी ने ताउम्र,

मनहूस कहलवाने में गवाँ दी !


लक्ष्मण की लक्ष्मण - रेखा ने,

मर्यादा की ऐसी सीमाओं में बाँधा,

बंधन की सीमाओं को जो लांघा,

पुरुष के पुरुषत्व ने ऐसा रौंधा,

ताउम्र कुलटा कहलवाने में गवाँ दी !


औरत हूँ मैं, ज़नाब मैं भी जानती हूँ,

अपनी शख़्सियत को पहचानती हूँ !

तेरी औकात क्या है के,

नश्तर कुछ यूँ चुभोते रहे,

ताउम्र घुट - घुट कर जीने में गवाँ दी !


पिता की नसीहत,

डोली पर जाकर अर्थी पर आना !

माँ की हिदायत,

उल्हाना मत दिलवाना !

भाई ने कहा,

बुज़ुर्गों की नाक मत कटवाना !


पति ने कहा,

अपनी हद में रहना !

हद के भँवर में,

कुछ ऐसी उलझी,

ताउम्र "शकुन",

खोखले रिश्तों को,

निभाने में गवाँ दी !


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy