खयालों की तर्जुमानी
खयालों की तर्जुमानी
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कान का पक्का हूँ मैं बहरा नहीं हूँ।
बात पर बेकार की सुनता नहीं हूँ।
बन्द कमरें कह रहे जाले हटा दो।
जालों से सुंदर तो मैं लगता नहीं हूँ।
तर्जुमानी बस खयालों की करूँ मैं।
बे सबब ही तो ग़ज़ल लिखता नहीं हूँ।
आईने से लड़ रही दुनिया ये सारी।
आईने से मैं मगर लड़ता नहीं हूँ।
झूठ से दुनिया ये सारी चल रही है।
झूठ पर ग़लती से भी कहता नहीं हूँ।
भेड़ जैसा चल रहा हर शख़्स अब तो।
भेड़ जैसी चाल मैं चलता नहीं हूँ