क़िस्मत में लिखा था ग़म-ए-मोहब्बत सहना भी
क़िस्मत में लिखा था ग़म-ए-मोहब्बत सहना भी
क़िस्मत में लिखा था ग़म-ए-मोहब्बत सहना भी
बेवफ़ा महबूब पर महदूद था मेरा ख़ुश रहना भी
जिनकी रुसवाई के डर से मैंने दुनिया छोड़ी थी
उन्हें मंज़ूर ना था एक दफ़ा अलविदा कहना भी
ज़िंदगी शतरंज की एक लाचार बिसात निकली
प्यादे के हाथ मुक़र्रर था इस क़िले का ढहना भी
ज़रा से सुक़ून की ख़ातिर है ये आलम-ए-बेहोशी
मजबूरी में मैंने एक शराबी का लिबास पहना भी
अधिराज शरीर का यूँ ज़ख़्मी होना था लाज़मी
आता जो नहीं था तुझे लहरों के साथ बहना भी