नज़र आता है
नज़र आता है
छिपे रहे अब यूँ ही
पन्नो के पीछे की
पड़ी जिंदगी खुद में
किताब नज़र आती है।
एक ये ही तूफान है या
एक वो ही तूफान था कि
आईना धुल गया कब का
पर अब जा के ये चेहरा
आईना नज़र आता है।
याद आ ही जाती है बीती जिंदगी
और सब कुछ फिर वैसा हो जाता है
ना जाने किस्से का कौन सा हिस्सा छुटा
कि जीवन खुद में किस्सा नज़र आता है।
फिर खुश क्यों ना होती हूँ मैं
अपना तमाशा देखकर
बस जिए जा रही हूँ
वो जीवन जो नरक से भी
बत्तर नज़र आता है।