जिन्दगी हो तुम
जिन्दगी हो तुम
तुमने मुझको चाँद सा तराशा भले
बाद बचपन के उसे फिर देखा नहीं,
तू मेरी जिन्दगी है प्रिये अनमोल सी
सो सोने को पत्थर से तौला नहीं,
ये कुमकुम ये बिंदी बड़ी खूब है
तेरे रुख पे लग के निखर सी गयी,
केश लहराए शामों-सहर हो गयी
रौशनी हो गयी जाने जिधर भी गयी,
तुम हजारों, लाखों, करोड़ों में नहीं
एक अकेली हमारी साँस सी हो,
मैं बिता दूँ खड़े हो जनम सात भी
सनम मेरी अटूट आस सी हो,
हमारे हुए तब तितली, मयूर जाना
पहले यूँ बड़ा बेखबर सा था मैं,
साकी मुझे औ मैंने मधुशाला जाना
खुद में खोया इस कदर सा था मैं।