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देखना अब वो दुनिया बदलेगी

देखना अब वो दुनिया बदलेगी

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सोच ही नहीं रही अब वो

उतर चुकी है उस रणस्थल में

जिसको सोचा था पुरुष ने

कि वो सिर्फ़ उसी का है !


सोच ही नहीं रही अब वो

कर रही है अब वो ऐसे काम

जिनको समझता था पुरुष

कि वो उसी की बपौती थे !


सोच ही नहीं रही अब वो

अलख जगा रही समानता का

विचारों की अदला-बदली

तोड़ रही है पूर्वाग्रह सब पिछले !


सोच ही नहीं रही अब वो

मजदूरिन से डॉक्टर तलक

रेजा से वैज्ञानिक तक

बन रही पुरुष की सहचरी !


सोच ही नहीं रही अब वो

माहौल बदल रही है वो

अपनी नयी सोचों से

उमंगों से स्फूर्ति से !


सोच ही नहीं रही अब वो

निकल रही है घर से बाहर

तोड़ रही है हर चौहद्दियाँ

अंतरिक्ष भी जा पहुँची अब !


पर मुश्किल ये है कि फिर भी

रास नहीं आता ये कुछ लोगों को

जकड़ें हुए हैं जो अब तलक भी

अपनी ही घटिया बेड़ियों से !


पर मुश्किल ये है कि फिर भी

नहीं भाता कुछ को अब भी

स्त्री का घर से बाहर निकलना

स्त्री का खुद के लिए सपने देखना !


पर मुश्किल ये है कि फिर भी

कुछ भेड़िये बाहर देख उसे

अब भी चबा डालना चाहें हैं

अब भी उसे मसलना चाहें हैं !


मगर अच्छी बात यही है दोस्तों

माहौल बदल रहा है धीरे-धीरे

सोच बदल रही है स्वयं पुरुष की

स्वीकार रहा है वो स्त्री का सामर्थ्य !


साथ दे रहा है वो स्त्री का

स्त्री के सपने पूरे करने को

सच कहता हूँ तुम सब सुन लो

आगत दुनिया स्त्री की होगी !


नयी तरह की हवा बहेगी

नयी सरगर्मी फैलेगी फ़िज़ा में

मुहब्बत के रंग भरेंगे सबों में

नफरत की तब चिता सजेगी !


हाँ, ये दुनिया स्त्री के इन्तज़ार में है

कि उसकी सोच के आयाम खिलेंगे

इस बेहूदा विकास के स्वप्न बदलेंगे

कुछ और ही करेगी यह स्त्री !


गर्भ में सबको जिसने लिया है

सदियों से जिसने गरल पीया है

देखना अब वो मंथन करेगी

देखना अब वो अमृत उगलेगी !


देखना वो दुनिया बदलेगी !!

देखना वो दुनिया बदलेगी !!




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