कभी न सोने वाला शहर मुबंई
कभी न सोने वाला शहर मुबंई
हजारों ख्वाब आँखों में लेकर के निकलते है,
उम्मीदों से भरा एक बैग अपने संग रखते है,
लड़ाई लड़ते है अक्सर मुकद्दर से,
हम टूटते हैं, बिखरते हैं मगर चलते ही रहते हैं।
यहाँ एक भीड़ अक्सर संग अपने रोज़ चलती है,
न जाने पर कहाँ किस सोच में मशगूल रहती है,
कवायत वक़्त से करते है सब पहले पहचाने की अकड़ते है,
झगड़ते है मगर आगे को बढ़ते है!!
कोशिशें रक्त बन बहती, यहाँ नित धमनियों में है,
दिखे मजदूर की ताकत, धुएं की बस चिमनियों में है,
यहाँ हर शख्स अपने आप में लिखता कहानी है,
कोई टाटा, कोई बिरला, कोई बनता अम्बानी है।
दूसरों के लफ़ड़ों में, यहाँ कोई नहीं पड़ता,
यहाँ जो सच अधिक बोले, वो बिल्कुल नहीं टिकता,
यहाँ बे-रोक और बे-टोक बहकी जवानी है,
यहाँ ना लाज का पर्दा है, ना आँखों का पानी है।
मगर यारों यहाँ की बात, बिल्कुल निराली है
दिखावे से भरे हैं लोग, जो अंदर से खाली हैं
जो खालीपन टटोलोगे, तो सागर से भी गहरा है
न मीठा जल यहाँ मिलता, न सच्चा दिल न चेहरा है।