तरस रहे हैं
तरस रहे हैं
फलक बनी है तेरी आँखें, राही को न तड़पाओ
आलिंगन को तरस रहे हैं, अब तो न तुम शरमाओ।
सरल सुझावों के जमघट में, त्याग हमारा बह जाएगा,
और तुम्हारी झुकी नज़र में, फ़ना सदा हो जाएगा,
लेकिन इन मंसूबों के पूरे होने में अड़चन है,
प्रेम का सागर उसे मिलेगा, मन मेरा छिल जाएगा|
भरने को उत्सुक है जो, सुराही को न तड़पाओ,
आलिंगन को तरस रहे हैं, अब तो न तुम शरमाओ|
बुलंद शहर के मंद कहर में, ध्यान हमारा बंट जाएगा,
फिर तेरी भीगी पलकों पे, वापिस वो लुट जाएगा,
लेकिन इन ख्वाबों के दम पर चलने में भी अड़चन है,
नखरों के क्षण उसे मिलेंगे, कफ़न मेरा सिल जाएगा|
अब तक जो सदा अडिग रहा, निर्मोही को न तड़पाओ,
आलिंगन को तरस रहे हैं, अब तो न तुम शरमाओ|
ख्वाब समेटे हैं नयनों में, श्वास हमारा रुक जाएगा,
तेरे भीगे अधरों से जब, मेरा नाम पुनः आएगा,
लेकिन "ज़रा"! इंतज़ार से, अश्रु को भी अड़चन है,
संग तुम्हारे जिएगा वो और तन मेरा फुक जाएगा|
"वीर" मोहब्बत ले आया,सिपाही को न तड़पाओ,
आलिंगन को तरस रहे हैं, अब तो न तुम शरमाओ|