सपनो से पहचान
सपनो से पहचान
वो मुसाफिर भी अपनी राह में
सपनों की मंज़िल ढूंढ़ने चला गया
शक के दौर में खुद को
साबित करने चला गया
आँखों में जीत का हौसला
और दिल में सपने
उजागर करने चला गया
ज़माने में अपने सपनों की चमक से
पहचान बनाने चला गया...।
ज़ख्म भी लगे उसे राह में
फिर भी सपनों को
हक़ीकत बनाने चला गया
दूर चाँद की चांदनी में
अपनी परछाई से तक़दीर को
बदलने चला गया
एहसास था उसे सपनों को
मुकम्मल करने में
यक़ीनन समय लगेगा !
माँ के आशीर्वाद को
ज़ख्मों पर मरहम बनाकर
आगे बढ़ता चला गया...।
जाने क्या ख्वाब थे
जिन्हे पाने के लिए
दुनिया से भी लड़ गया
अपनी अँधेरी ज़िन्दगी में
रंगों की खुशबू भरने चला गया
जब पूछा खुदा ने कि
आखिर है क्या तेरे सपनों की दुनिया ?
माँ के चेहरे पर मुस्कराहट ला सकूंं
यह कहकर,
अपनी मंज़िल की ओर चला गया...।
उसके ख़्वाबों में
किसी की ख़ुशी का राज़ छिपा है
- वो जान गया
यकीनन हर किसी की ख्वाहिशें
पूरी न कर सकेगा
- वो पहचान गया
जब तक रूह रहेगी
उसके सीने में,
हर किसी की ख़ुशी के लिए
लड़ जाएगा !
हो सका तो मरने के बाद
दूसरों के सपनों के लिए
परछाई बन जाएगा...।
ज़माने के सामने
खुद को साबित करने में
समय यूँ ही बीत गया,
खुदा के सवालों का
उस पर अनोखा रंग चढ़ गया
जवाबों को सपनों में
है महफूज़ रखा उसने
ज़िन्दगी एक सवाल है
और सपना उसका जवाब
उसको यह एहसास हो गया...।
सपना तो बस मुस्कराहट को
महसूस करना था
जिसके लिए वो मुसाफिर बन गया
किसी की नज़रों में मुजरिम
तो खुद की नज़रों में
इंसान बन गया...!