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वो हमसफ़र तो था , पर उससे हमनवाई न थी

वो हमसफ़र तो था , पर उससे हमनवाई न थी

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वो हमसफ़र तो था , पर उससे हमनवाई न थी

हम चले एक साथ थे , मंज़िल भी बनाई साथ थी । 
एक बिस्तर पर , एक छत के नीचे कटती दोनों रात थी ॥ 
पास हो कर भी, दोनों के दरमियाँ ख़ामोशी की बिसात थी । 
इक दूजे को न कुछ कहने को था , न सुनाने को कोई बात थी ॥ 
वो संग तो था मेरे , पर फिर भी नज़दीकी कभी आई न थी । 
वो हमसफ़र तो था , पर उससे हमनवाई न थी.॥

न कभी सुकून था , न ही ऐतबार था इक दूजे पर । 
एक कश्मकश थी दोनों के बीच , पर प्यार से सवाल कौन पूछे पर ??
बातों में न ख़ुशी की झलक थी , न अपनेपन की तपिश ही थी । 
सवाल भी नहीं थे , और न किसी जवाब की खलिश ही थी ॥ 
वक़्त तो कट रहा था , पर कभी ज़िन्दगी मुस्कुराई न थी । 
वो हमसफ़र तो था , पर उससे हमनवाई न थी.॥

ऐसा नहीं था कि बेवफाई का आलम था । 
फ़िक्र भी थी , और रिश्ता भी कायम था ॥ 
पर सिर्फ ज़िम्मेदारी के अलावा और कोई दुहाई न थी । 
हमदर्दी थी , पर ख़ुशी की परवाह न थी ॥ 
दुनिया के लिए संग थे हम , पर साँसे कभी मिल पाई न थी । 
वो हमसफ़र तो था , पर उससे हमनवाई न थी.॥ 
वो हमसफ़र तो था , पर उससे हमनवाई न थी.॥ 

 


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