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वाणि

वाणि

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नीरज पूर्ण जलाशय सी, सुनो अपनी कहानी है,

 पवन के स्नेह के धीरज सी, मेरी प्यासी सी वाणि है।

 

 शुरू की याद से पूछो, शुरू में ही रवानी है,

 नज़र मिलने से पहले ही , मिली अपनी इमानि है,

 नज़र जो खुदा ने, खुद ही सजानी है,

 नज़र जो मुड़ गई मुझ पे, लगा यही जवानी है,

पवन के स्नेह के धीरज सी, मेरी प्यासी सी वाणि है।

 

 खुदा ने आसमान से ही, कहा तुझे ये पानी है,

इशारा न समझ पाया, यही मन की नादानी है,

 मोहब्बत ले पहुंचा मैं , तो चौखट आसमानी है,

 मैं तो तब हुआ पागल , जाना तू उसकी दीवानी है,

 पवन के स्नेह के धीरज सी, मेरी प्यासी सी वाणि है।

 

 मेरी आँखों में पानी था, मगर नीर तोह हानि है,

 किसी पत्थर के टुकड़े से, लगी जैसे ज़ुहानि है,

 दिल को छू गई थी तू , तो दिल ने तू ही पानी है,

 पवन के स्नेह के धीरज सी, मेरी प्यासी सी वाणि है।

 ख़ुदा ने दे के तुझको फिर, कहा धारा बहानी है,

कि हर धड़कन की स्याही से, रज़ा हमको सजानी है,

 फ़साने आज भी कह दू, के तू तो दिल रूहानी है,

 मुझे अपनी ये ज़िंदगी, तेरे संग बितानी है,

पवन के स्नेह के धीरज सी, मेरी प्यासी सी वाणि है।

 

 प्रफुल्लित आस है मेरी, कि ये मुसकान बढ़ानी है,

मुझे संग जागना तेरे, व निद्रा संग बुलानी है,

 तेरी बाहो के सागर में, तू कैसी सूक्ष्म रानी है,

 तेरे होठों से हो कर झलक दिल की दिखानी है,

 पवन के स्नेह के धीरज सी, मेरी प्यासी सी वाणि है।

 

 पलकों की लज्जा से सीमित ,

ये जीवन की कुर्बानी है,

पवन के स्नेह के धीरज सी, मेरी प्यासी सी वाणि है।


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