राष्ट्रहित का लें संकल्प
राष्ट्रहित का लें संकल्प
सभ्यताएँ बदल गईं, बदल गया संसार
संस्कारों के नाश से, बिखर रहे परिवार।
पश्चिम से मारुत बही, उड़े आर्य संस्कार
स्वदेशी पतवार से, नाव लगेगी पार।
फूल खिलें अंतर्मन में, मिटैं सब बैर भाव
इंसान के जीवन की, चलै तीव्रतम नाव।
नव स्फूर्ति, नव सोच से, होगा कायाकल्प
राष्ट्र हित का हम सभी, मिलकर लें संकल्प।