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रोटियाँ

रोटियाँ

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माफ करो ऐसा कहकर लोगों ने,

एक भूखे को आगे भगा दिया।

सूख गई पड़े हुए वो रोटियाँ,

तो उसे कचरे में बहा दिया।


वो रोटियाँ भी बोल रही थी,

मुझे यूँ ही कूड़े में ना फेको,

लोगों को मेरी जरूरत है।

दो दिन भूखे रहकर देखो,,

मुझ में कितनी हिम्मत है।


एक घर ने फेंकी रोटियाँ

क्योंकि बच्चा उनका किसी,

बर्गर के लिए तरस रहा था।

दूसरे घर ने उठाई रोटियाँ क्योंकि,

बच्चा भूख के मारे तड़प रहा था।


लजीज लगता है होटलों का खाना,

जब पैसों की बरसात होती है।

भूखे ने खाकर कहा पता नहीं था,

रोटियों में ऐसी बात होती है।


कूड़ेदान में पड़ी है रोटियाँ,

लगता है कहीं दावत हुई है।

क्या पता उन्हें ग़रीबों में तो,

रोटियों के लिए बगावत हुई है।



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