बारिस की बूंदे
बारिस की बूंदे
गुज़रा ज़माना फिर याद आया,
लो लौट के फिर ये सावन आया,
साथ लाया अपने बारिश की वो
अल्हड़ बूंदे,
आखिर वो है कहाँ?
बारिश की अल्हड़ बूंदे ये बार-बार पूछे
मुझ से हर आर ये पूछे।
जाने क्या बात थी उनमें।
जो मेरे साथ-साथ बारिश को भी दीवाना कर गई
मुझे तो रुला गई और बादलों को भी नम कर गई
क्या होगा दीदार उनका फिर से, फूल और पंछी भी
मुझसे ये बार-बार पूछे
आखिर वो है कहाँ बारिश की अल्हड़ बूंदे
मुझ से बार-बार पूछे...