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साइकिल वाली लड़की

साइकिल वाली लड़की

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ये लड़की

जो हाथ में साइकिल पकड़े

मेरी आँखों के सामने खड़ी है

ये लड़की

जो इतनी ख़ूबसूरत है

कि ख़ुदा भी पछताया होगा

इसे ज़मीं पे भेज के

कि रख लिया होता इसे

जन्नतुल-फ़िरदौस में ही

ये लड़की

जिसकी आँखों में

ज़िन्दगी की ताज़ा झलक है

ये लड़की

जिसकी न जाने क्यूँ

झुकती नहीं पलकें हैं

ये लड़की

जो एकटक मुझे देखे जा रही है

ये लड़की

जो पता नहीं

क्यूँ मुस्कुरा रही है

मैं सोचता हूँ

हिम्मत करूँ

और कह दूँ

लेकिन क्या?

किस अल्फ़ाज़ से अपनी बात शुरू करूँ

क्या इसे ख़ूबसूरत कहूँ?

नहीं

ख़ूबसूरत कहना ठीक न होगा

ये तो ख़ूबसूरत से कहीं बढ़के है

क्या है, मुझे नहीं पता

लेकिन कुछ है

जिससे नज़र हटाने का

मन नहीं करता

लेकिन ऐसे कब तक देखता रहूँगा?

कुछ तो कहना होगा

कुछ तो सुनना होगा

कि उसके मन में क्या है?

अपने मन का तो मुझे पता है

क्या पता उसके मन में कुछ और हो!

लेकिन क्या पता उसका मन ख़ाली हो!

खुले आसमान की तरह

और वहाँ जगह ही जगह हो

मेरे लिए

जहाँ मैं हरी घास पे लेट जाऊँ

और ये लड़की

मेरे सीने पे

अपनी साइकिल चलाते हुए आए

और इसकी साइकिल का पहिया

मेरी गर्दन के पास रुके

और फिर मैं पहिये की तीलियों के बीच से

इस नाज़ुक बला को निहारूँ

और पूछूँ

जान लेने का इरादा है क्या?

और फिर ये हँस दे

एक ऐसी हँसी

जो आसमान तक गूँज जाए

जिसे फ़रिश्ते भी सुनके

जल-भुन जाएँ

और ख़ुदा से करें शिकायत

कि ये ठीक नहीं हुआ!

जिसे हम जन्नत में देख सकते थे

वो ज़मीन पे साइकिल चला रही है!

किसी और का दिल बहला रही है!

 

मैं अपनी क़िस्मत पे इतराता हूँ

मैं सोचता हूँ

काश! ऐसा हो जाए

कि ये साइकिल वाली लड़की

अपने फ़ेसबुक प्रोफ़ाइल पिक्चर से

बाहर आए

और मुझसे कहे

इतना ही मन हो रहा है

तो फ़्रेण्ड रिक्वेस्ट क्यूँ नहीं भेज देते?


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