तन्हा
तन्हा
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जी शायद कुछ पूछा आपने...
पर नहीं मैं अकेली नहीं बस तनहा हूँ
यादों की भीड़ है, अपनों का मेला है
हर तरफ़ फूल है, ख़ुशबुओं का रेला है
पर नहीं मैं अकेली नहीं बस तन्हा हूँ
रौशनी बिखेरी है, सूरज भी पूरा है
चाँदनी भी आती है, और चाँद पूरा है
पर नहीं मैं अकेली नहीं बस तन्हा हूँ