*माँ*
*माँ*
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भागती, दौड़ती सी
ज़िन्दगी की लय से लय मिलाती
क़दमों के आगे पीछे
अपने ही सुर-ताल पर
नाचती फिरती है.......!!
वह जो जीवित है
सिर्फ अपने अपनों के लिए
अपने बच्चों के लिए
बिना किसी आस उम्मीद के
सिर्फ अपने फ़र्ज़ निभाती है...!!
स्वस्थ चित्त श्रम करती हुई
रोज जीतती है
अपने ही किये श्रम से
वह श्रम जीवी है श्रम भरती है रोज
अपनी साँसों में और आनंदित होती है.....!!
आगत के स्वागत को
सदा तत्पर
हँस कर सदा बहते रहना
उसकी आदत है
क्योंकि वह सत्य शक्ति की
साधक है
सर्वस्व स्वयं ही ढोती है.....!!
नीति बद्ध हो
सबको राह दिखाती है
हर अतिविशिष्ट की सी
विशिष्टता लिए
फिर भी सदा सहज
सरल रहती है...!!
क्योंकि वह माँ है, माँ हाँ, वह माँ है ...!!