आज
आज
आज का दर्द कुछ ऐसा है,
कि दो शब्द लिख देता मैं भरकर उससे
पर ख़ुशियाँ साथ नहीं छोड़ती।
ये उस क़दर हाथ नहीं मोड़ती
के दर्द के उस बादल की श्याही से,
मैं लिख देता सफ़ेद अक्षर में
के आज का दर्द कुछ ऐसा है,
पर ख़ुशियाँ साथ नहीं छोड़ती ।
आज का दर्द कुछ ऐसा है,
कि दो शब्द लिख देता मैं भरकर उससे
पर ख़ुशियाँ साथ नहीं छोड़ती।
ये उस क़दर हाथ नहीं मोड़ती
के दर्द के उस बादल की श्याही से,
मैं लिख देता सफ़ेद अक्षर में
के आज का दर्द कुछ ऐसा है,
पर ख़ुशियाँ साथ नहीं छोड़ती ।