शिद्दत-ए-इश्क़
शिद्दत-ए-इश्क़
हवा के झोंके तेरे आने का फरमान दे गई,
एहसास-ए-इत्र का जिक्र फ़िज़ा कर गई।
नुजूमी सितारे से मांगी ख्वाहिश पूरी हो गई,
इबादत-ए-इश्क़ आज रुबरु हो गई।
तेरे पैरों की आवाज मेरी धड़कनें बढ़ा गई,
रुखसार-ए-चेहरे पर लालिमा सी छा गई।
उड़ते आँचल को तेरी उंगली थाम गई,
इत्तफ़ाक-ए-चलते मैं यही थम गई।
इस अंजुमन में आपकी पेशगी पा गई,
चेहरा-ए-गुलशन से बहार आ गई।
गुफ़्तगू में तेरी मैं कहीं गुम सी हो गई,
इज़हार-ए-मोहब्बत तुझ में समा गई।
आग़ोश में तेरे मैं कुछ यूँ समा गई,
आलम-ए-नदीयाँ सागर में समा गई।
सिक्कों की खनखनाहट चुप हो गई,
शिद्दत-ए-इश्क़ असली दौलत बन गई।