शब्दहीन संवाद
शब्दहीन संवाद
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शब्दहीन हो सकता है
पर अर्थहीन नहीं...
हर सम्भव वर्जना के उपरान्त भी
जब स्थापित हो जाता है
तुमसे संलाप...
पानी में तैरती चंद्रविभा
और साथ ही उसमे झलकता
मेरा प्रतिबिम्ब...
वो तुम्हारी सघन नीरवता में
तुमसे क्षण भर का संवाद है...
तुम्हे प्रत्येक अंश में खोजती
मेरी क्षण-क्षण की प्रतीक्षा
तुम संग संवाद ही तो है...
श्वास-निश्वास प्रतिक्षण
ध्यानरत... तुमसे संवाद ही तो है...
अर्द्धविराम पर ठहरी
इस जीवन की हर पंक्ति
तुम्हारे संवाद की पुनरावृत्ति है...