पर्यावरण (दोहावली)
पर्यावरण (दोहावली)
1)
जितने काटे पेड़ है, उतने दियो लगाय।
शुद्ध रहे पर्यावरण, नहीं प्रलय तब आय।।
2)
बिन हरियाली के यहाँ, जीना दूभर होय।
पर्यावरण जो न रहे, नहीं बचेगा कोय।।
3)
पेड़ न कोई काटना, इनमें भी हैं प्राण।
पर्यावरण की देन है, मानव तन की जान।।
4)
पर्यावरण रखे सदा, इंसानों का ध्यान।
लेकिन होता है कहाँ, जागरूक इंसान।।
5)
तेज रसायन से यहाँ, सब कुछ दूषित होय।
मर जाये पर्यावरण, मानव दे सब खोय।।
6)
शुद्ध अगर पर्यावरण, शुद्ध होय धन धान।
हरी भरी धरती कहे, मानव रख तू ध्यान।।
7)
दूषित वायु हो अगर, दूषित जल भी होय।
देख देख पर्यावरण, निश दिन मन में रोय।।
8)
लाभ स्वयं का देखना, अब मानव की रीत।
पर्यावरण से न उसे, रही यहाँ अब प्रीत।।
9)
पर्यावरण न जानता, प्राणी नहीं प्रबुद्ध ।
ज्ञान बिना कैसे बने, देश भी ये समृद्ध।।
10)
असली जंगल काट के, नकली दिये लगाय।
पर्यावरण पे दे रहा, बीच बैठ कर राय।।
11)
कागज पर मुद्दा बना, पर्यावरण सुधार।
काम कोई करता नहीं, तन्त्र हुआ बीमार।।
12)
देखो भारतवर्ष में, प्रलय होय हर साल।
ठीक अगर पर्यावरण, हो न कभी ये हाल।।
13)
हम सब गर मिलकर करे, पर्यावरण बचाव।
कोई अनहोनी हमें, नहीं दे सके घाव।।
14)
समय अभी भी शेष है, खुद को ज़रा संभाल।
मानव ये पर्यावरण, बन जायेगा काल।।
15)
मानव की करतूत से, बदले सारे देश।
पर्यावरण बदल गया, बदले सब परिवेश।।
16)
जितना विकसित हो रहा, मानव का संसार।
उतना घटता जा रहा, पर्यावरण विचार।।
17
आएगी अब जब प्रलय, होगा सकल विनाश।
पर्यावरण अगर रहे, बचने की हो आस।।
18)
करके पंगु सकल धरा, नभ की छीन उड़ान।
छलनी कर पर्यावरण, मानव बने महान।।
19)
जितना धरती ने दिया, हो उसमे संतुष्ट।
वरना यह पर्यावरण, हो जायेगा रुष्ट।।
20)
मांगे है पर्यावरण, अब अपना उद्धार।
कौन चुकायेगा यहाँ, अब उसका उपकार।।