बुजुर्ग
बुजुर्ग
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ओढ़कर धूप वो सर्दी छुपाना चाहता है,
भीख ना माँगकर वो भी कमाना चाहता है।
जिस्म बेजान हो चुका है उसका फिर भी,
वो जिंदा है अभी ये दिखाना चाहता है।
वो जानता है बेटे उसमें ना रहने देंगे,
उन्हीं के लिये फिर भी घर बनाना चाहता है।
थक चुका है सारी उम्र यूँ ही कमा-कमाकर,
आज बेमतलब ही सब कुछ गंवाना चाहता है।
वो दरख्त जिसने किया साया उम्र-भर सब पे,
हारकर दुनिया से खुद को गिराना चाहता है।।