सफ़र
सफ़र
सफ़र अनजान है मेरा मगर फिर भी चला हूँ मैं
हज़ारों मील की दूरी पलों में तय किया हूँ मैं।
चला हूँ सोचकर कुछ तो अभी करना बहुत कुछ है
अकेले तो नहीं ख़्वाबों को लेकर ही बढ़ा हूँ मैं।
मेरी हिम्मत मेरी माँ से विरासत में मिली मुझको
उसी हिम्मत को ले हर मुश्किलों से भी भिड़ा हूँ मैं
नहीं आऊँगा मैं वापस कभी भी सोचना मत ये
मुझे ख़ुर्शीद है बनना अभी कुछ पल ढला हूँ मैं।
जो टूटे ख़्वाब तो आई "कमल" मुझको मेरी यादें
इन्हीं यादों की दहलीजों पे अब तक ही खड़ा हूँ मैं।