प्रेम तुम्हारी मज़दूरी
प्रेम तुम्हारी मज़दूरी
प्रेम तुम्हारी मज़दूरी में
मैं पागल - पागल खोया हूँ ।
अश्कों में मैं डूबा हूँ
मैं आँचल - आँचल रोया हूँ ।
जीवन की परिभाषा सीखी है,
तुमसे जीने का ज्ञान लिया ।
जब जब द्वन्द रहा मस्तिष्क में
तुमसे ही हृदय प्रधान लिया ।
ख़्वाबों में खोना सीखा है
मैं पहरों - पहरों सोया हूँ ।
मुझे वन प्रेम का बनना है
मैं प्रांगण - प्रांगण पोया हूँ ।
प्रेम तुम्हारी मज़दूरी में
मैं पागल - पागल खोया हूँ...!