आज भी
आज भी
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दौड़ पड़ती हूँ
आज भी उन्हीं पगडंडियों से....
फिर से बच्ची बन जाती हूँ|
बड़ा बन मन घबराता है...
मन को मना लेती हूँ....
अपने बच्चों के संग ही
बचपन के खेल खेल लेती हूँ|
अच्छा होता है बच्चा होना...
खुल कर हँसना और खुल कर रोना..
कल का क्या ठिकाना..
पल में जी लेती हूँ|
दौड़ पड़ती हूँ
आज भी उन्हीं पगडंडियों से "वंदे "
फिर से बच्ची बन जाती हूँ|