आगे बढ़ना
आगे बढ़ना
आगे बढ़ना
आगे बढ़ना प्रकृति का नियम है,
आगे बढ़ना, बढ़ते जाना और ऊंचाइयों तक पहुँचना।
वास्तव में आगे बढ़ना प्रतिबिंब है पीछे छूटने का,
बहुत सी चीजें छूट जाती है पीछे, इस आगे बढ़ने की दौड़ में,
ऊपर छड़ने या नीचे गिरने की होड़ में।
पीछे छूट जाता है बचपन का मुस्कराता चेहरा,
गाँव की यादें, नाना नानी की बातें,
हंसी ठिठोलियाँ, प्यार भरी बोलियाँ
और सबसे अहम ....
प्यार और सबसे प्यारा।
आगे बढ़कर, ऊपर चढ़कर या नीचे गिरकर,
इन सबको पाना मुश्किल है।
नीचे पाने, छूने या देखने भर के लिए
वापस वही आना पड़ता है जहाँ से शुरू किया था।
जैसे एक पेड़ से पुनः पौधा उगाने के लिए
शुरुआत उसी बीज से होती है।
मैं आगे नहीं बढ़ी हूँ, वही हूँ,
शायद ये सब खोने से डरती हूँ।
फिर भी...
सब कुछ पीछे छूट रहा है, बिना मेरे आगे बढ़े,
या शायद सब कुछ आगे बढ़ रहा है।
लेकिन....
मैं वही हूँ, क्योंकि जानती हूँ
सब कुछ दुबारा यही से शुरू होगा।
मुझे पाने, छूने या देखने भर के लिए
उसे यही लौटना पड़ेगा,
बिलकुल उसी बीज की तरह।
शायद मैं भी किसी की प्यारी हूँ,
अपने प्यारे के इंतज़ार में.....