गज़ल
गज़ल
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इमकान के भरोसे पे तलबगार भी रहे,
फलने के हर तवक्को के आसार भी रहे।
उनके करम की आस का अरमां बना रहा,
ख़ुशियों की आरज़ू लिये सरशार भी रहे।
देखा नजर ने अक्सर नया मंजर बहार का,
उलझे हुए ख्याल के किरदार भी रहे।
चाहा के नज़रे यार करें पेश गुल हसीं,
फूलों के जेरे साया मगर खार भी रहे।
उनसे जुड़ा ये नाता लगा उस्तवार सा,
लेकिन ताल्लुकात से अग्यार भी रहे।
उनको करीब पा के लगा जगा नसीब है,
मासूम बढ़ी उम्मीद पर नाचार भी रहे ।