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Shailaja Bhattad

Abstract

5.0  

Shailaja Bhattad

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जिंदगी है तो आखिर जिंदगी ही

जिंदगी है तो आखिर जिंदगी ही

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जिंदगी अनजान सफर पर चलती है।

कही दुआओं से जुड़ती है तो

कहीं अगर मगर में गुथती है।

 कहीं चढ़ती है तो कहीं ढलती है।

जिंदगी है कि फिर भी जिंदगी ही रहती है।


कहीं खिलती है तो कहीं सिमटती है।

कहीं राह पर चलती है तो

कहीं गुमराह सी रहती है।

कहीं रिश्ते निभाती दिखती है तो ,

कहीं रिश्तो से छूटती दिखती है।

जिंदगी है कि फिर भी जिंदगी ही रहती है।


कहीं संवरती है तो कहीं

टूटती बिखरती है।

कहीं हिल-मिलकर चहकती हैI

तो कहीं सूनेपन में भटकती है।

जिंदगी है कि फिर भी जिंदगी ही रहती है।


कहीं किस्मत चमकती है तो,

कहीं किस्मत पर रोती है।

कहीं तूफानी रहती है तो ,

कहीं तूफान से विचलित रहती है।

कहीं फितरत से बेबाक रहती है तो,

कहीं डर के सांए में पलती है

जिंदगी है कि फिर भी जिंदगी ही रहती है।


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