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ग़ज़ल 7

ग़ज़ल 7

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गगन छूने चला है
गज़ब का, हौंसला है।
 
वो खुशबू बाँटता है
बगीचों में, पला है।
 
गुलों पर डोलता है
वो भँवरा, मनचला है।
 
किसी की ना सुनेंगे
ये उनका, फैसला है।
 
अकेला था सफर में
मगर, मीलों चला है।
 
पुराना ख़त मिला है
फ़क़त शिकवा गिला है।
 
ज़रा चलता नहीं है
ये कैसा, काफिला है।


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