शून्य
शून्य
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शून्य,
जीवन का अभ्युदय,
हुआ जिससे।
सांसारिक विकिरणो से दूर,
खुद में पुर्ण शून्य।
जो बढ़ता घटता नहीं,
बस शून्य ही रहता है।
पुर्ण शून्य अर्ध शून्य,
सब बेमानी है।
कुछ है,
तो बस शून्य,
बिना किसी विशेषण के।
जो स्वयम्भू को,
शिव कर दे,वो है शून्य,
अनंत शून्य।