बारिश की बूंदें !
बारिश की बूंदें !
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मन में कितनी उमंगें जगाती है
ये बारिश कितना कुछ कहती है
अनगिनत सुनहरे ख़्वाब सजाती है
जब भी मैं इसकी बूंदों में नहाती हूँ
कितना कुछ ये मुझमें बोती रहती है
मुझे स्त्री होने का एहसास कराती है
रोज कितना कुछ नया सिखाती है
मुझे नाज़ उठाना सिखाती रहती है
मेरे रोम-रोम को झंकृत करती है
संगीत और साज़ बजाती रहती है
अपनी बूंदों की मनमानियों से
मेरे रोम रोम में आग लगाती रहती है
मेरे लबों पर ये दुआ पिया की सजाती है
प्रेम प्रीत की ये जोत जगाती रहती है
मन में कितनी उमंगें जगाती है
ये बारिश कितना कुछ कहती है