तुमसे न हो पाएगा
तुमसे न हो पाएगा
सुना है 'बारूद की गूँज' आज खुदा ने क़ुबूल कर ली,
'आज़ान की गूँज' में शायद, अब वो बात नहीं रही,
कुछ लोगों को 'मुलाकात' के लिए सीधा ‘जन्नत’ बुलाया है,
'ज़रा' सी बात है, लेकिन ये महज़ ‘बात’ नहीं रही,
यु तो ख्व़ाहिश है उनकी,
की ‘दुसरो के घर’ का हिस्सा भी उनके हिस्से में आ जाये,
मगर उनके खुद के ‘घर’ में भी, वो ‘हालात’ नहीं रही!
सुना है 'जनरल असेंबली' में वो फिर से कश्मीर का रोना रोके आये हैं,
हर बार की तरह इस बार भी जनाब अपनी इज़्ज़त खो के आये हैं
बलोचिस्तान में वो बारूद की बारिश करते हैं,
और खुदा से ख्व़ाब में कश्मीर की ख्व़ाइश करते हैं,
इसी साजिश में,
वो अपनी इज़्ज़त का ज़्यादा ख्याल नहीं करते,
समझदार हैं,
जो हैं ही नहीं उस पर बवाल नहीं करते!
अब तो बस इतनी ख्व़ाइश हैं की,
ये सरहद की दीवार ढह जाए
जो सब उस पार है, वो सब इस पार हो जाए!
ये जो सरहदों पर सियासत का कारोबार चलता है,
सब बेकार है,
मोहब्बत का कारोबार अच्छा है,
बस ऐसा न हो की सरहदें पार कर हम-तुम न मिल पाए कभी,
ये मोहब्बत भी कहीं कमबख्त़ कश्मीर बन कर रह जाए ।