बेवफ़ाई
बेवफ़ाई
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शमा की बेवफ़ाई, क्या गुल खिला गई
जलना तो था शमा को, दीपक जला गई
दीपक जलेगा अब तो, बस उम्र भर यूँ ही
रोशनी की तुमको तो शायद, अब ज़रुरत नहीं
ना देना था साथ, तो बताते कभी
प्यार की आग दिल में, न लगाते कभी
प्यार करके जो तुमने, है ठुकरा दिया
था बुझने को पर, बुझ सका न दिया
दिये की ज़िन्दगी है अब, अंधेरों में गुम
फिर भी जल के वो कहता, मुसाफिर तू सुन
ना करना कभी, शमा पर ऐतबार
नहीं है उसे भी, दिये से प्यार
लगा देती आग, रोशनी के लिए
उसे तो बस, एक सहारा चाहिए