दिल्ली में जहानाबाद
दिल्ली में जहानाबाद
एक
मेरे जन्म से पहले से ही
था जहानाबाद
जहानाबाद को
दिल्ली में देखता हूँ
टीवी के पर्दे पर
लोग डरते हैं
जहानाबाद से
मैं लोगों की
पुतलियों से
झपकते डर को
हाथ बढ़ाकर
छूना चाहता हूँ
मैं बताता हूँ
मेरा बचपन
निरापद गुज़रा है
अपने गाँव में
जहानाबाद संसदीय क्षेत्र में
लोग चतुर हैं
जहानाबाद के एक गाँव को
पूरा जहानाबाद नहीं मानते
मैं जहानाबाद के
आतंक को
लोगों के
डाइनिंग टेबल से
हटाना चाहता हूँ
लोग बड़े-बड़े कौर चबाते
रुक जाते हैं सहसा
घिग्घी बंधने लगती है
उनकी
मुझसे आगे
बात करते हुए
दिखने लगते हैं
अचानक उन्हें
कई कई जहानाबाद
मेरी आँखों में
प्लेटें अधूरी छोड़
भाग पड़ते हैं
वाश-बेसिन की तरफ़
एक-एक कर के
कुर्सी पर
अकेला बचा जहानाबाद
गर्दन पीछे कर
उन्हें कातर निगाहों से
देखता सुबकता है
और फिर
टेबल पर
औंधा गिर पड़ता है
नेपथ्य में
एक साथ
कई दरवाज़ों के
लगने की आवाज़
धड़ाम से आती है
और शांत हो जाती है
मेरे जन्म से पहले से ही
था जहानाबाद
जहानाबाद मुझसे
क्यों कर पैदा हो गया!
......
दो
जहानाबाद
कोसता है
अपने
लहूलुहान वर्तमान को
जीते जी
इतिहास के घूरे पर
चले जाने के लिए
जहानाबाद अकेला नहीं है
विश्व के मानचित्र पर
वे जहानाबाद
कितने अच्छे हैं
जो अकेले हैं
अचर्चित हैं
स्थानीय हैं
टीवी पर नहीं दिखते
अख़बारों में नहीं आते
मैगज़ीन की कवर स्टोरी
नहीं बनते
जहानाबाद
तब सिर्फ़
जहानाबाद रहता है।
......