आदमी
आदमी
पहले वह
क्रूर होते समय को देखता है,
फिर वह अपनी मासूम बेटी को देखता है
फिर वह ओढ़ लेता है चुप्पी की ख़ाल,
वह बेतहाशा एक रोज़
रेत घड़ी खोजने लगता है
डिजिटल होती जिंदगी में
रेत घड़ियां अपना धैर्य गंवा चुकी है,
आदमी के भीतर का आदमी
अंधड़ में तब्दील हो चुका है।