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यादों की महफ़िल

यादों की महफ़िल

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पलकें मूँदे करवटों की

सिलवटें गिनती

ये नीले निशान की कहानी को

ढूँढती मेरे खयालों की

महफ़िल सजी है

उरोज के आसमान में।


चले आओ ना 

आज दोहराते है

लम्हें वो हसीन, 

चिनार के सूखे पत्तों की

सरसराहट आज भी

गूँजती है वादियों में।

 

हम दोनों के पदचिन्ह से

जो उठती थी

संदल सी महकाती है

आज भी वो सुगंधित उष्मा 

जो ऊँगलियों के बीच

पसीजती थी

गवाही देती

तेरे मेरे मिलन की ! 


उफ्फ़फफफ  

मेरे काँधे के तिल पर लगी

ये मोहर से बहती है

एक किमामी खुशबू सराबोर ! 


उस बर्फ़िले पहाड़ के उपर

जाती पगडंडी पर

पड़ा हुआ वो फूल

तड़पता है तुम्हारी

ऊंगलियों की रूमानी

छुअन को महसूसते !


 क्या क्या याद करूँ ?

वो हया से झुकती

मेरी पलकों को

अपने लबों से तुम्हारा उठाना, 

वो आग आज भी कायम है 

मेरे बादामी रुख़सार को

गुलाबी करती, 

ठोड़ी पर बैठे खिलखिलाती ! 


उस दिन झील के

आईने में उतरी थी

तस्वीर तेरी-मेरी 

याद है ?

वो कँवल भी मुस्काया था

जब आँख तुमने मारी थी

मैं नैन झुकाए शरमाई थी !


आज रोम रोम चर्राया मेरा,

छिल गया देखो तुम्हारी याद के

नुकीले एहसास से,

वो चुम्मी वाला

मरहम ईईईशशशशश 

कितना शीतल होता था !


याद की पुरवाई में अब

तो बस पलते है सपने

तू वहाँ मैं यहाँ पर

फासलों की कशिश से

कहाँ मरती है प्रेम की चरम।

 

शिद्दत से जुनूँ जगा जाती है

वो दूर से तुम्हारा

बेइंतेहा चाहना मुझे

मेरा यकीन से गुज़र जाना

तुम्हारी यादों की गलियों से

है ना परिभाषा यह प्रेम की।


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