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नारी- दर्शन

नारी- दर्शन

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भौर भई, मैं उठा बिस्तर से, मलके आँखे

उबासी भरी, हाथ लम्बे कर, ली अंगड़ाई तरुणा भर के

दृष्टि टिकी मां चित्र दुर्गे पर, लगी जो कक्ष दीवार पर मेरे

किया नमन उन्हें प्रथम दिवस का, ये भी तो है इक नारी I 

फिर निवृत होकर, बढ़ाये कदम शिवालय

जाप किया मैंने शिव संग शक्ति का

किया अर्पण दीप, धूप, फूल संग पाती

द्वित्य नमन किया शिव-शक्ति को, ये भी तो है इक नारी I

 

रुके नहीं कदम फिर मेरे, पहुंचा मुख्य कक्ष में

तृतीय नमन किया मम-माता, जिस ने मुझ को जन्मा

कितने कष्ट झेले मेरे पालन में, मैं मूर्ख, उसे अब समझा

आज पछताऊं हाथ मल-मल कर, ये भी तो है इक नारी I 

अभी कदम कुछ बड़ ही पाते, पकड़ ली मेरी धोती

दादा- दादा कर लपट गयी वो, छोटी से मेरी पोती

बड़े प्यार से उठाकर उसको, सीने से लिपटाया

इत-उत डोले, तोतली बोल-बोले, अमृत मन घोले

उस के सूंदर मुखड़े ने, सब चित-मन मेरा भुलाया

चतुर्थ नमन इस नन्हे मन को, ये भी तो है इक नारी I 

घर-आँगन जो हरा भरा है

है किस के, परिश्रम का ये फल

मेरी भार्या जो थके नहीं कभी, पर सोचे हर पल

कितने कटु-वचन, सुने है इसने

कभी न रूठी, दिए मुझे बस, सुख के पल

पंचम नमन तुम्हे मम-भागी, मेरा हितकर सोचा

जिस ने मुझ संग कुटुम्ब संजोया, ये भी तो है इक नारी I 

मेरे घर आँगन में, जो खेली-कूदी

वो लाड प्यार की, मेरी नन्ही गुड़िया

हुई परायी, पल न गुजरा, वो मेरी बगिया की डाली

बहुत तड़पा मन, रोई-लिपटी अपनों संग, बैठ गयी वो डोली

षष्टम नमन तुझे हे! बाती जिस ने मान रखा द्वि घर का

अपना खो कर, पर अपनाया, ये भी तो है इक नारी I 

तीज त्यौहार बहुत ही भाए, जब अवसर अपनों संग आये 

घर मंगल गाये, बच्चो की बुआ, कुछ तोहफ़ा दे, वे हरषाये

है याद मुझे, जब बहन ने राखी बांधी, अपना पन जतलाया

दीपक लौ संग नजर उतारी, बलैयां दे-दे, मुझे गले लगाया

जब नेग दिया, वह मुस्काई, मैं समझ गया, उसे मन भाया

सप्तम नमन तुझे मेरी बहना, जिस संग बचपन बिताया

बहन-भाई बचपन का खेला, आज बना यह, तीज़ का मेला

जिस संग सावन हरषाया, ये भी तो है इक नारी I 

कितने रूप धरे तू नारी, हर रूप में तेरी ही गाथा

जो नर तन, मन, धन, कर्म से सोचे, जीवन सुखद है बन जाता

तेरी माया, तेरे ही दर्शन, सब को तुझ से ही आशा,

तू करती तृप्त कण-कण को, है केवल मन यही अभिलाषा I 

           


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