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मेरी प्यारी लाडो

मेरी प्यारी लाडो

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एक बेटी,

जब ससुराल से आए,

तब लगती पराई सी है !

सही कहती है, दुनिया

शादी के बाद बेटी पराई है।

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जब घर आए,

तब लगती है, कुछ अलग सी है !

पर आज भी मेरे लिये तो,

यही मेरी प्यारी लाडो है !

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जिसके घर आते,

मेरे घर मे रौनक आए !

ना उसके ना आते,

मेरे आखों मे आँसू,

क्या यही मेरी प्यारी लाडो है !

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जिस का एक दिन भी,

फ़ोन ना आए,

तो मेरे दिल मे हो बेचैनी,

वही तो मेरा दिल और धड़कन है !

यही मेरी प्यारी लाडो है !

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अब तो आते ही बैठे सोफे पर,

और करे मुझसे बातें पर मेरी लाडो तो,

पलंग पर बैठे बिना,

मुझसे बात ही ना करती थी !

क्या यही मेरी प्यारी लाडो है !

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आते ही अपने जाने का वक़्त भी बताती है !

पर मेरी गुडिया वक़्त तो

कभी देखती ही नही थी !

क्या यही मेरी प्यारी लाडो है !

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शायद ससुराल और मायके ने,

उसे पराई का नाम दिया हो,

पर मेरे तो घर में वह हमेशा,

मेरी प्यारी लाडो है !

क्या यही मेरी प्यारी लाडो है !

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खाती तो रोज है,

पर पेट भर कर ,

मन भर कर तो,

मेरी गुडिया मेरे हाथ,

का खाना ही खाए !

क्या यही मेरी प्यारी लाडो है !

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आने से पहले उसकी खाने की,

ख्वाइशों की खुशबू मेरे अगन में आती हैं !

पड़ोसन भी आकर पूछती हैं !

क्या आज बेटी आती हैं।

क्या यही मेरी प्यारी लाडो है !

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जो कभी छोटी-छोटी पर रोती थी !

और मुझसे लड़ती थी !

आज वही बड़ी-बड़ी बातों का,

दर्द मन में लिए बैठी है !

क्या यही मेरी प्यारी लाडो है !

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