ख़ामोशी
ख़ामोशी
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कभी तिनके का बहाना कर आँख मसल दी
कभी हवा के तेज़ झोंके से आँख झपक ली
कुछ बूँदे पसीने की आढ़ में सुखा लीं
कुछ रुमाल की सिलवटों में पिरो दीं
बरसते मेघा को कुछ आँसू समर्पित किए
कभी इतना हँसे के कुछ यूँही बह गऐ
अब ये ज़रूरी तो नहीं
कि हर बात पे रोया जाऐ