महिला - एक शक्ति
महिला - एक शक्ति
कभी माँ, कभी बेटी, कभी बहू कभी बहन,
रिश्ते निभाते-निभाते क्या-क्या नहीं करते वे सहन,
पति की सेवा, बच्चों की परवरिश,
इनका जीवन क्यों है इसी में सीमित,
उड़ सकते हैं वे खुलकर आसमान,
पा सकते हैं अपने सपनों का जहान,
जब इतनी क्षमता रखते हैं वे,
तो क्यों करते हैं इन्हें पिंजरे में बंदित,
एक तरफ प्रार्थना में देवी माँ को करते हैं प्रणाम,
और दूसरी तरफ औरत के इज़्ज़त को करते हैं बाज़ार में नीलाम,
है वे भी हमारी तरह एक इंसान-ए-यार,
तो फिर क्यों होते हैं इन पर अनगिनत अत्याचार,
माँ की ममता से वंचित तो नहीं है हम,
फिर क्यों होने देते हैं औरतों पर ज़ुल्म,
क्या इतने गिर गए हैं हमारे सोच विचार,
क्या अब नहीं रहे हमारे दिल में इनके लिए इज़्ज़त और प्यार!
रानी लक्ष्मीबाई से लेकर लता मंगेशकर तक औरतों ने दिखाई है जोश और हिम्मत,
कि उनमें भी है ताक़त, कि वे भी है इस देश की ज़रूरत,
यह मत भूलों के एक औरत ने हमको जन्म दिया है,
बीस हड्डियों के समान टूटने का दर्द पिया है,
माँ के दूध का क़र्ज़ अगर चाहते हो निभाना,
तो औरत के साथ अन्याय नहीं, न्याय करके है दिखाना,
क्या ऐसे देश की कल्पना हम कभी कर पाएँगे,
जहाँ औरत सुरक्षित और सर्व संपन्न समान हो जाएँगे,
तभी होंगे हम असली मर्द,
जहाँ औरत मर्द अलग नहीं, वे सब एक इंसान कहलाएँगे|