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सपने

सपने

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निकली हूं आज सपनों को अपनी परछाई बनाकर

जो बिना हाथ पकड़े मेरे साथ रहते हैं

जो सपने देखे थे बचपन में

जो सपने देखे थे बंद आंखों से

आज उन्हें खुली आंखों से पूरा करने निकली हूं

मैं आज सपनों को अपनी परछाई बनाकर निकली हूं।


नींद खो - सी गई आंखों से

एक उमंग पैदा हो गई है अचानक से

इन आँखों में चमक सी उठी है

जो मुझे मेरे सपनों के साथ लेकर उड़ी है।


जो सपने मैंने पाले थे

उन्हें दाना मैंने डाला है

गगन को चूमने के लिए

उन्हें उड़ान का मौका दिया है।


आकाश को चूमने

सपनों के पंखों पर निकली हूं

मैं आज सपनों को

अपनी परछाई बनाकर निकली हूं।

नींद भले ही कितनी ही गहरी हो जाए

मैं अपने सपनों को जगा कर सोती हूं,

सपनों को पूरा करने का जुनून सोने नहीं देता,

मैं सपनों का बिस्तर बिछा कर सोती हूं।


यह संसार बड़ा कठोर है

मैं रात को दो आंसू बहा कर सोती हूं।

मेरे छोटे से मन में सपने बड़ा संसार बनाते हैं

कभी युद्ध छोड़ जाते हैं तो कभी साहिल तक ले जाते हैं।


कब होंगे सपने सच मेरे

बस यही आस लगाए बैठी हूं

लिए पोटली अपने सपनों की

जादुई नगरी की तरफ निकली हूं

मैं आज सपनों को

अपनी परछाई बना कर निकली हूं...।


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