जिसने अपना ज़मीर मारा है।
जिसने अपना ज़मीर मारा है।
जिस ने अपना ज़मीर मारा है
उसको दुनिया में सब गवारा है
दिल ये कमबख्त तुझ पे वारा है।
वरना दुनिया से कब ये हारा है।
उसने खुद को ही अब पुकार है।
जाने कितना वो बेसहारा है।
जब के कुछ भी नहीं यहाँ मेरा।
जो भी हारा है सब तुम्हारा है।
झूठ को सच समझ रहा हूँ मैं।
ये हुनर मुझपे आशकारा है
हा उसीने दिए बहुत सदमे
जो हमें जानो दिल से प्यारा है
इश्क़ इक जंग है मगर इसको
वो ही जीता है जो भी हारा है
वक़्त उसको मिटा के रख देगा।
जिसको भी वक़्त ने संवारा है।
ज़िंदगी लाख नागवारा हो।
पर कहाँ कोई इसका चारा है
क्या तरक्की हुई है दुनिया की।
हर कोई आज बेसहारा है
मोत आई तो ये लगा मुझको।
क़र्ज़ जैसे कोई उतारा है।
मेरे महबूब इश्क़ में हर पल
हो रहा क्यूँ भला खसारा है।
महेबूब सोनालिया