ना जाने क्यूँ रोते हैं हम
ना जाने क्यूँ रोते हैं हम
ना जाने क्यूँ रोते हैं हम।
ना जाने क्यूँ ख़ुश होते हैं हम।
इस अधूरी-सी दुनिया में।
कुछ अधूरे रिश्ते धुँड़ते हैं हम।
ज़िंदगी में कुछ ख़्वाब कुछ
कुछ रिश्ते क्यूँ खो देते हैं हम।
किसे बताए इस दिल के हालात
डर लगता हैं कहीं रो ना दे हम
या किसी को खो न दे हम।
ना जाने क्यूँ रोते हैं हम।
ना जाने क्यूँ ख़ुश होते हैं हम।
गैरों से ज़्यादा तो अपनो ने दिए ग़म
जिनके लिए जान दिया करते थे
आज उनसे मिलने में घबराता हैं मन।
कहते हैं लोग भुल जाओ सब
उन्हें कौन बताए मायूसी की किस कगार
पे आ गए हम।
आए थे इस दुनिया में सोचा कुछ कर दिखाएँगे
अब लगता है ना जाने कहाँ आ गए हम।
ना जाने क्यूँ रोते हैं हम।
ना जाने क्यूँ ख़ुश होते हैं हम।