रोटी यूँ ही नहीं फूलती थी गुब्बारे सी
रोटी यूँ ही नहीं फूलती थी गुब्बारे सी
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माँ उसमें साँस भरती थी सीने की
बारास्ते फूँकनी और आग
और चूल्हा प्रतिशोध में छोड़ता था
काला-धूसर धुआँ
आँखों की जान ले लेने के लिऐ
माँ नहीं समझती थी 'स्लो-पॉइज़न' का मतलब
उसके लिऐ मोतियाबिंद या आँखें कमज़ोर होना
सबकी वज़ह ज़मीन पर नमक फैल जाना था
जो गर तुरंत न सिमेटा गया
तो एक उम्र के बाद बनाता था फ़फ़ोले मोतियाबिंद के
या मरने के बाद नर्क में बीनना होता था उसके एक-एक दाने को
पलकों के किनारों से
माँ ठीक थी कि 'नमक पीछा नहीं छोड़ता'
लोगों के हर उस विश्लेषण से असहमति है मेरी
जो माँ को नासमझ कहता है
चूल्हे की आग से दुनिया की तपिश
और मसालों से तीखापन जान लेने वाला कोई
नासमझ कैसे हो