क़िस्सा कुर्सी का
क़िस्सा कुर्सी का
कुर्सी कुर्सी कहत कहत,
जग उधराया जाए,
जाके हाथ ना आवे कुर्सी,
तै सारी जुगत भिड़ाए !
नेता हो या आम आदमी,
कुर्सी सभी को भाए,
कुर्सी की शान के आगे,
सब कुछ फीका होए !
कुर्सी से, हर कोई चाहे
फेविकोल बोंडिंग,
बंधन कभी ना छूटे,
साम , दाम , दंड, भेद,
सब उपाय हैं छोटे !
हम को भी मिल गई कुर्सी,
हम बैठे इतराये,
आप सभी की दुआ चाहिये,
कि कुर्सी हाथ से न जाये !