मैं करमी हूँ
मैं करमी हूँ
मैं करमी हूँ, मुण्डा हूँ
मेरे बालों में फूल नहीं शोभते
कंघी लगाना रास नहीं आया मुझे
मेरी कोमल अंगुलियों में
तीर धनुष है, कलम का वार है
भात नहीं रांधती
दूर से उसकी खुशबू आती है
हंडिये पर चढ़े भात को मैं देखती हूँ
दूर से उठते हुए धुएं से
पहचानती हूँ भात का रांधना
घाटो खाकर मेरी चमड़ी भी
मोटी हो गई है घाटो की तरह
जंगली फूल पत्ते, शाही, खरहा मेरे आहार हैं
धधकती आग मेरे ऊनी वस्त्र
पत्तों के छाल ही मेरे आवरण हैं
हाँ मैं करमी हूँ, मुण्डा हूँ...
मैने जन्म दिया बिरसा को
आवा पुत्र बिरसा को
धरती की लाज रखने के लिए
नंगी धरती को बचाने के लिए
माफ करना मुझे, मैं समझ नहीं पाई
सभ्य लोगों की भाषा
नहीं सीख पाई उनसे लड़ने का तौर तरीका
मुझे तो आया बस 'उलगुलान'
जिसे आप "रिवेलियन" कहते हैं
हाँ मैं करमी हूँ, मुण्डा हूँ...