गर्भ में आत्महत्या
गर्भ में आत्महत्या
माँ डर लगता है इस दुनियाँ में आने से,
सुना है हैवान बसते हैं यहाँ इंसानी चेहरों में,
जो कच्चा ही चबा जाते हैं मासूम सी कलियों को,
ना खिलने देते हैं, ना महकने देते हैं,
मसलकर रख देते हैं उपवन सारे को,
माँ डर लगता है इस दुनियाँ में आने से।
सुना है इन हैवानों के सर पर ना सींग होते हैं,
ना लम्बे-लम्बे नाख़ून और गंदे दांत होते हैं,
ना लाल-लाल आँखें होती हैं इन हैवानों की,
जो छिपे होते हैं,कभी घर में, या पड़ौस में,
कभी मामा चाचा के रूप में भी आते हैं,
बता कौन पहचाने उन मायावी मारिचों को,
माँ डर लगता है इस दुनियाँ में आने से।
सुना है आजकल ये भीड़ मे हमला करते हैं,
टूट पड़ते हैं मासूम अबला पर,
या शिकार करते हैं मासूम बच्चियों को,
लहूलुहान कर देते हैं तन और मन को,
जीने का हक भी छीन लेते हैं,
माँ डर लगता है इस दुनियाँ में आने से ।
कितने धर्म हैं,कितने मज़हब,
कोई इनको ना इन्सानियत सीखा पाता है,
कोई कानून भी इनको फांसी पर ना लटका पाता है,
ना चौरहे पे लटका के इनको सजा दे पाते हैँ,
ये गंदे दांत दिखा कर कानून का ही मज़ाक उडाते हैं,
बता माँ तू कैसे मुझको बचा पाएगी उन हैवानों से,
जिनका ना कोई धर्म है ना मज़हब है,
मुझे लौट जाने दे गर्भ से ही,
माँ डर लगता है इस दुनियाँ में आने से ।