शायरी
शायरी
काम ही मेरा जूनुन और उसूल है
आयेगा इक दिन वो जरूर सवेरे।
क्यों डरूँ मैं नसीब के चक्करों से
देखता हूँ मैं ख़्वाब हर दिन सुनहरे।।
काम ही मेरा जूनुन और उसूल है
आयेगा इक दिन वो जरूर सवेरे।
क्यों डरूँ मैं नसीब के चक्करों से
देखता हूँ मैं ख़्वाब हर दिन सुनहरे।।